ग़ज़ल
खबर मेरे लूटने की जिस दम उड़ी थी
बड़ी ही वो मनहूसियत की घड़ी थी
कभी जिनको मेरी जरूरत पड़ी थी
जहां आज सुंदर इमारत खड़ी है
वहां एक निर्धन की कल जो झोपड़ी थी
लगा देखने मैं तो निर्माण ओके
मगर फाइलों में बहुत गड़बड़ी थी
जो दुश्मन ने दागी थी मुझ पर मिसाइल
मेरे वास्ते वो फ़क़त फुलझड़ी थी
सभी का हक राही इस गुलिस्ता पर
वतन के लिए जंग सबने लड़ी थी
प्रवीण राही
खबर मेरे लूटने की जिस दम उड़ी थी
बड़ी ही वो मनहूसियत की घड़ी थी
मुझे अब वो पहचानते ही नहीं हैं
कभी जिनको मेरी जरूरत पड़ी थी
जहां आज सुंदर इमारत खड़ी है
वहां एक निर्धन की कल जो झोपड़ी थी
लगा देखने मैं तो निर्माण ओके
मगर फाइलों में बहुत गड़बड़ी थी
जो दुश्मन ने दागी थी मुझ पर मिसाइल
मेरे वास्ते वो फ़क़त फुलझड़ी थी
सभी का हक राही इस गुलिस्ता पर
वतन के लिए जंग सबने लड़ी थी
प्रवीण राही
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