उम्मीदों के साए में जीता देश , समर्थवान आगे आएं




• सरकार के भरोसे पर महामारी से निपटना संभव नहीं है।

• व्यवस्था को कोसने की बजाय कौशल से निपटने की आवश्यकता






अश्वनी शर्मा  ' साहिल '
स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक





उम्मीदों के साए में जीते भारत में कोविड-19 जैसी जानलेवा महामारी को लेकर अव्यवस्थाओं पर आलोचनाओं का बाजार भी
खूब गर्म है।देश ने कोरोना से निपटने के लिए जनता कर्फ़्यू, लाक डाऊन के दौरान भक्ति प्रदर्शन, ताली-थाली -दिया -राेशनी के कलरव- कोलाहल भी देखे और मरकज़ से निकले जमातियों का तांडव  भी झेला है।
       यह  सच है कि अधर्म की काट के लिए धर्म के कुचक्र की नहीं, बल्कि कौशल की आवश्यकता पड़ती है। अकेली सरकार के भरोसे पर इस महामारी से निपटना असंभव है। एक दूसरे पर आरोप- प्रत्यारोप की राजनीति ने देश में हर दिन कोरोना संक्रमण से संक्रमित रोगियों की संख्या में बढोत्तरी की है। अगर  जमातियों ने अपनी जिम्मेदारी निभाई होती तो आज कोरोना की महामारी का यूं विकराल रूप नहीं देखने को मिलता। दिल्ली के मामले इस बात की तसदीक़ करते हैं कि मरकज़ से मरघट की ओर ले जाने वाले जमातियों की करतूतों ने मुस्लिम समाज को कलंकित कर दिया।आज निजामुद्दीन मरकज, मुंबई , सूरत, दिल्ली, मुरादाबाद जैसी घटनाओं के लिए सत्ता पर बैठा हर वो शख्स जिम्मेदार है।जो व्यवस्थाओं को सुचारू कराने में सहयोग की बजाए, आलोचनाओं से ही महामारी को टक्कर देने की पुरजोर कोशिश में लगा है। ये सारी बातें वास्तविकता से मुंह मोड़कर की जा रही हैं। 
चीन की देन कोराना कोविड- 19 से  देश पूरी तरह प्रभावित है ।कोराना को लेकर चीन का असली चेहरा भी सभी के सामने है। हालांकि उसके यहां से कोरोना भागा नहीं है । बस दुनिया की नजर में भगाया गया है। कोराना महामारी के चीनी एक्सपर्ट भी चेतावनी दे चुके है कि नवंबर में चीन एक बार फिर से इस महामारी की चपेट में आएगा। वहीं, इसकी भी पोल खुल चुकी है कि चीन ने पीपीई समेत जो भी किट और इक्वीपमेंट अमेरिका, पाकिस्तान व भारत समेत अन्य देशों को दिया है वो बद्तर हैं। भारत में डीआरडीओ ने टेस्टिंग के बाद एक तिहाई माल को रिजेक्ट भी कर दिया है।
     हां यह सच है कि भारत में भी महामारी से निपटने की व्यवस्थाएं जैसे पीपीई, रैपिड टेस्टिंग किट, वेंटिलेटर व डेडिकेटेड अस्पतालों की कमी है। अन्यों के मुकाबले टेस्टिंग भी कम है, लेकिन तैयारियां चल रही हैं।  टैस्टिंग बढ़ गई हैं। इस दौरान भारत मेडिकल डिप्लोमेसी भी बढ़ा है और 108 देशों को पैरासिटामाल व हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन भेजा  गया है ।हालांकि भारत सरकार की सूझबूझ और जागरूक जनता द्वारा समय से उठाये गए कदमों की वजह से ही देश में अन्य देशों के मुकाबले कोराना मरीजों की संख्या बहुत कम है। मगर सरकार यह बताने में विफल रही है कि भारत में कोराना - विषाणु का संक्रमण आया- फैला कैसे ‌? क्या यह विदेश से आए लोगों के साथ नहीं आया ? जहां तक मुझे याद आता है लाक डाउन की घोषणा लखनऊ में गायिका कनिका कपूर के संक्रमित पाये जाने के बाद हडकंप मचने के बाद की गयी थी। लंदन से आयी इस गायिका की एयरपोर्ट पर स्क्रीनिंग नहीं हुई थी । लखनऊ उसने तीन-चार हाई प्रोफाइल पार्टियों में प्रस्तुति दी थी । अकबर अहमद डम्पी की पार्टी में  पुरानी मित्रता निभाने वसुंधरा राजे सिंधिया भी सांसद बेटे व बहू के साथ आयीं थीं । सांसद महोदय अगले दिन दिल्ली में कुछ अन्य सांसदों के साथ राषटृपति वगैरह से मिले थे । सरकार में तब चिंता -चैतन्यता हुई कि पता नहीं किस -किस को संक्रमण छू गया हो। यही चिंता  चैतन्यता बनी और सरकार की आंख खुल गयी। सरकार ने आगे आकर बताया कि जब हम मानसिक रूप से मज़बूत होगें तब हमारी
 इच्छा शक्ति पल पल हमें जाग्रत अवस्था में लाकर संकट से जूझने को प्रेरित करेगी ।
यह सत्य है कि विपत्ति में जब विचारों का प्रवाह रुक जाता है तब मस्तिष्क पूरी तरह कार्य करना बंद कर देता है। तब  चैतन्यता का भाव जागृत होता है। सीमित संसाधनों में 130 करोड़ की आबादी वाले देश में कोरोना कोविड-19 जैसी भयानक महामारी से देश को बचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगे आते हैं। वह देश और समाज के प्रति चिंतित होते हैं। जो अपने आप में  अद्भुत ही नहीं अद्वितीय है। आस्थाओं और श्रद्धाओं के बीच जीवन जीने की यही शैली हमारी इच्छाओं, इच्छा शक्ति और संघर्ष को प्रबल  करती है।  कहा गया है कि आस्था है तो पत्थरों में भी रास्ता है। अचेतन अवस्था में निढाल रणक्षेत्र में पड़े लक्ष्मण में चेतना जागृत करने वाले सुसैन वैद्य की बताई प्राणदायिनी संजीवनी को लाने वाले हनुमान सरीखे भक्त की भांति आज देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसी संजीवनी की खोज में जुटे हैं। हालांकि  देश में कोरोना के संक्रमण से संक्रमित 15712 मरीजों में 4713 यानि 30 फीसदी  जमात से जुड़े मामले सामने आए हैं ।देश में कुल मामलों में 2231 मरीज स्वस्थ होकर अपने घर भी पहुंचे हैं । वहीं  507 लोग कोरोना की चपेट में आकर दम तोड़ चुके हैं । कटु सत्य है कि देश  भय और भूख के संकट से गुजर रहा है। वर्तमान सरकारी आंकड़ो के अनुसार  देश की 73 % दौलत जिन एक प्रतिशत अमीरों  पर है। वह वर्ग कारोना के ख़तरे से बाहर हैं और  लम्बे समय तक लाक डाऊन में में रह सकते हैं। उच्च मध्यवर्ग के लोग भी लाक डाउन की मार झेल सकते हैं।
मगर देश की बड़ी आबादी 40 करोड़ जो जितना रोज़ कमाते थे उसी पर गुज़र करने लायक खाते थे, वे आज बेरोज़गार हैं।
जिन गरीबों की पीठ पर पैर रखकर राजनीतिक दल सत्ता में पहुंचते है वही सबसे पहले उनके पेट पर लात मारने की योजना बनाते हैं। कोई भी काल, युग रहा हो आम आदमी सदैव उपेक्षित रहा है। जब कि अंतिम आदमी तक योजनाओं को पहुचाने के दावों के ढिढोंरे पीटे जाते हैं ।  मगर वही आम आदमी इस संकट से भयभीत है। डरा ,सहमा, आम आदमी  दर -दर की ठोकर खा रहा है। संकट के इस दौर में आम आदमी, सबसे ज्यादा मजबूर है। हकीकत तो यह है कि 130 करोड़ के देश में कुल  47.5 करोड़ रोजगार हैं जिसमें से 39 करोड़ के आसपास असंगठित क्षेत्र में हैं। वहीं, इसमें कोई दो राय नहीं है कि असंगठित क्षेत्र के काफी मजदूर रजिस्ट्रर्ड नहीं हैं। विश्व के सबसे बडे लोकतंत्र में भींड तंत्र के लिए मुठ्ठी भर योजनाएं हैं। हालांकि ढाई पा चून, पुल पे रसोई वाले भीडतंत्र के लिए सरकार द्वारा आम आदमी को सहायता देने के उद्देश्य से जो बिना अधूरा लगाए निशुल्क राशन वितरण की प्रक्रिया शुरू की गई है वह वास्तव में सराहनीय है मगर जो कोटा धारक राशनकार्ड धारकों से पंचिंग के बाद भी उनके हिस्से का राशन गटक जाते हैं। वह निशुल्क राशन वितरण कर सकेंगे। जो मजदूर रजिस्ट्रर्ड नहीं है उनको एक हजार रुपया नहीं मिल पा रहा है, जन-धन खाते में महिलाओं को तीन महीने तक 500-500 दिया जा रहा है। उसमें भी दिक्कत हो रही है। यह भी सत्य है कि निर्धनता की रेखा के नीचे के लोग आने वाले समय में कारोना से कम भूख से ज्यादा ग्रस्त होओगे ।इस नाजुक वक्त में बेहतर तो यही है कि सामर्थयवान आगे आएं और अपने अपने क्षमतानुसार सहयोग दें। बस, सरकार के भरोसे पर महामारी से निपटना संभव नहीं है।

Metro live News 9458415131
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