नई दिल्ली कांग्रेस 2019 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी और बीजेपी की चुनौती से निपटने के लिए विपक्षी महागठबंधन को सबसे बढ़िया दांव मानती है. इसके लिए हर सीट पर बीजेपी के खिलाफ एक ही विपक्षी उम्मीदवार उतारने का फॉर्मूला भी उछाला गया. एक तरफ कांग्रेस आलाकमान की देशभर में विपक्ष को एकजुट करने की है, वहीं पश्चिम बंगाल में कांग्रेस नेताओं में बिखराव और मनमुटाव कुछ और ही कहानी बयां कर रहा है.  

सूत्रों की मानें तो पश्चिम बंगाल कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. राज्य में पार्टी के कई दिग्गज नेता असंतुष्ट नज़र आ रहे हैं. गुटबाजी के चलते पार्टी की हालत बद से बदतर होती जा रही है. कांग्रेस की राज्य में हालत का इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि हाल में हुए पंचायत चुनाव में पार्टी टीएमसी, बीजेपी और वाममोर्चा के बाद चौथे स्थान पर खिसक गई है.

2019 लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस महागठबंधन के दम पर बीजेपी को रोकने के लिए बड़ी भूमिका में आना चाहती हैं लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने अभी तक कुछ खुलकर नहीं कहा है. इधर, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी भी  अपने पत्ते नही खोल रही हैं. कांग्रेस और टीएमसी आपस में हाथ मिलाने को तैयार होंगे या नहीं, इस पर स्थिति साफ नहीं है.

अनिश्चितता के इन हालात में पश्चिम बंगाल कांग्रेस के कुछ नेता असमंजस में हैं. खबर ये है कि अपनी दावेदारी मजबूत करने के लिए पश्चिम बंगाल कांग्रेस के कई बड़े नेता टीएमसी में जाने का रास्ता तैयार करने में लगे हैं. सूत्रों की मानें तो इसी हफ्ते कांग्रेस के कई नेताओं ने तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की.  
बंगाल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद अबु हशेम खान चौधरी, राज्य से कांग्रेस विधायक और पार्टी सचिव मोइनुल हक टीएमसी महासचिव पार्थ चटर्जी से लगातार संपर्क में हैं. कांग्रेस के कुछ और विधायक भी उनके साथ बताए जाते हैं. कयास लगे जा रहे हैं कि पश्चिम बंगाल कांग्रेस का एक धड़ा टीएमसी में शामिल हो सकता है.

मोइनुल हक ने एक जनसभा के दौरान कांग्रेस छोड़ने का एलान करते हुए इन कयासों पर मुहर भी लगा दी है. मोइनुल हक झारखंड के लिए कांग्रेस के पर्यवेक्षक भी हैं.

पश्चिम बंगाल में इस उठापटक को देखते हुए दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान के कान भी खड़े हो गए हैं. कांग्रेस अध्यक्ष 6 जुलाई को दिल्ली में पश्चिम बंगाल के सांसदों, विधायकों और अन्य नेताओं के साथ बैठक करने वाले हैं. इस बैठक में पश्चिम बंगाल को लेकर पार्टी की भावी रणनीति पर चर्चा करने के साथ अपने घर को भी एकजुट रखने पर जोर दिया जाएगा.   

पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के कुछ नेताओं की टीएमसी से मुलाकातों की खबर पार्टी के लिए परेशानी का सबब जरूर है. हालांकि पश्चिम बंगाल के पार्टी नेताओं की ओर से ये दलील भी दी जा रही है कि वे टीएमसी नेता पार्थ चटर्जी से महागठबंधन के सिलसिले में ही चर्चा करने गए थे जिससे कि बीजेपी को 2019 लोकसभा चुनाव में शिकस्त दी जा सके. इनकी ओर से ये दलील भी दी जा रही है कि हमारे लिए सबसे बड़ा लक्ष्य पश्चिम बंगाल में पांव पसार रही बीजेपी को हराना है.

वहीं, पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी कुछ अलग ही सुर में बोल रहे हैं. बता दें कि चौधरी शुरू से टीएमसी के साथ किसी भी तरह का गठबंधन करने के सख्त खिलाफ हैं. अभी कुछ ही दिन पहले चौधरी ने अपनी पार्टी के सांसद और वकील अभिषेक मनु सिंघवी पर पार्टी के खिलाफ काम करने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से शिकायत भी की थी. चौधरी का कहना था कि जिन मामलों को लेकर प्रदेश कांग्रेस टीएमसी को बंगाल में घेर रही है उन्ही मामलों की सिंघवी पैरवी करते नजर आते हैं.

अतीत में पश्चिम बंगाल से कांग्रेस के दमदार नेताओं की लंबी चौड़ी फेहरिस्त रही है. इनमें सिद्धार्थ शंकर रे, प्रणब मुखर्जी, प्रियरंजन दासमुंशी के नाम शामिल हैं. ममता बनर्जी ने भी अपनी पार्टी बनाने से पहले खुद भी कांग्रेस की युवा तेजतर्रार नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाई थी. प्रियरंजन दासमुंशी का निधन हो चुका है. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की सक्रिय राजनीति में लौटने की संभावना ना के बराबर है. ऐसे में कांग्रेस के पास पश्चिम बंगाल में ऐसा कोई दमदार नेता नजर नहीं आता जिसे पार्टी ममता बनर्जी के सामने खड़ा कर सके. 
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