मन विचलित हो जाता है मेरा


मन विचलित हो जाता है मेरा ऐसे लोगों से।।
जो घिरे हुए हैं ईर्ष्या, निंदा,
और चुगली जैसे रोगों से।।

उन लोगों के बगल में छुरी और मुख में राम होता है।।
दूसरों की टांग खींचना उनका काम होता है।।

जुड़ चुके हैं जो द्वेष, जलन, और नफरत के उद्योगों से।।
मन विचलित हो जाता है मेरा ऐसे लोगों से।।

 गांव और शहर की हर गली के नुक्कड़ पर उनका स्थान होता है।।
दूसरों की हंसी मजाक बनाना उनका काम होता है।।

शर्म नहीं आती जिनको गंदे शब्द प्रयोगों से।।
मन विचलित हो जाता है मेरा ऐसे लोगों से।।

दूसरों के अवगुणों को वो बड़े प्यार से बांचा करते हैं।।
अपने अंदर के दुर्गुण क्यों नहीं वो जांचा करते हैं।।

दूर नहीं हो सकते हैं जो ऐसे विषय और भोगों से।।

मन विचलित हो जाता है मेरा ऐसे लोगों से।।
जो घिरे हुए हैं ईर्ष्या, निंदा, और चुगली जैसे रोगों से।।

कवि पंकज राणा
बिसहाडा, दादरी
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