नरेंद्र मोदी  सरकार ने धान, दाल, मक्का जैसी खरीफ फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी ) लागत का डेढ़ गुना करने का फैसला लिया है. एमएसपी वो कीमत होती है जिस पर सरकार किसानों से अनाज खरीदती है. सरकार लागत के आंकलन के लिए ए2+एफएल फॉर्मूला अपनाया है. ए2+एफएल फॉर्मूले के तहत फसल की बुआई पर होने वाले कुल खर्च और परिवार के सदस्यों की मजदूरी शामिल होती है. लेकिन किसान संगठनों ने सी-2 फार्मूले से लागत तय करने की मांग की है.
किसान संगठनों का कहना है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य लागत से डेढ़ गुना करने से बड़ी राहत होगी. लेकिन सवाल ये है कि लागत किस आधार पर तय हो. किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने न्यूज18 हिंदी को बताया कि आखिर ए2+एफएल और सी-2 फार्मूले से तय एमएसपी में क्या अंतर है. ए2+एफएल फार्मूले के तहत फसल की लागत में जमीन की कीमत शामिल नहीं है, जिसकी सिफारिश स्वामीनाथन आयोग ने की थी.
टिकैत का मानना है “यदि सी-2 फार्मूले से सरकार एमएसपी तय करे तो यह कि‍सानों के लि‍ए फायदेमंद होगा. उसमें सरकार को कुछ बदलाव करने होंगे. टिकैत कहते हैं सरकार डेढ़ गुना लागत देने की बात कर रही है, लेकिन यह क्यों नहीं बता रही है कि आखिर फार्मूला कौन सा है. इससे जनता में भ्रम फैल रहा है. सरकार कह देगी कि हमने वादा पूरा किया और किसानों को फायदा मिलेगा ही नहीं.”
हालांकि, सरकार इस फैसले को ऐतिहासिक बता रही है. सरकार का मानना है कि 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने में उसके इस फैसले का बड़ा असर पड़ेगा. केंद्र सरकार ए2+एफएल फॉर्मूले से फसल लागत तय करके खुद को किसान हितैषी बताने की कोशिश में जुटी हुई है. 2019 के लोकसभा चुनाव में किसान काफी अहम भूमिका निभाएंगे. देश में 9.2 करोड़ किसान परिवार हैं. इसका मतलब करीब 45 करोड़ लोग. वे लोग जो गांवों में रहते हैं और सबसे ज्यादा वोट करते हैं.
फसल लागत नि‍कालने के तीन फार्मूले
ए-2: कि‍सान की ओर से किया गया सभी तरह का भुगतान चाहे वो कैश में हो या कि‍सी वस्‍तु की शक्‍ल में, बीज, खाद, कीटनाशक, मजदूरों की मजदूरी, ईंधन, सिंचाई का खर्च जोड़ा जाता है.
ए2+एफएल: इसमें ए2 के अलावा परि‍वार के सदस्‍यों द्वारा खेती में की गई मेहतन का मेहनताना भी जोड़ा जाता है.
सी-2: लागत जानने का यह फार्मूला किसानों के लिए सबसे अच्छा माना जाता है. इसमें उस जमीन की कीमत (इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर कॉस्‍ट) भी जोड़ी जाती है जिसमें फसल उगाई गई. इसमें जमीन का कि‍राया व जमीन तथा खेतीबाड़ी के काम में लगी स्‍थाई पूंजी पर ब्‍याज को भी शामि‍ल कि‍या जाता है. इसमें कुल कृषि पूंजी पर लगने वाला ब्याज भी शामिल किया जाता है. यह लागत ए2+एफएल के ऊपर होती है.
टिकैत ने कहा सी-2 फार्मूले से फसल लागत तय करने की मांग को लेकर यूनियन यूपी के सभी जिलों में प्रदर्शन करेगा. आपको बता दें कि प्रवीण तोगड़िया भी सी-2 फार्मूले के आधार पर लागत कर डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देने की मांग कर रहे हैं.
समर्थन मूल्य क्यों?
किसान अपनी फसल को बाजार किसी भी भाव पर बेचने की लिए स्वतंत्र है. लेकिन अगर कोई खरीदार नहीं मिला तो सरकार एक न्यूनतम मूल्य पर उसे खरीदती है. इससे नीचे उस फसल का दाम कभी नहीं गिर सकता. यानी किसानों को उनकी उपज का ठीक मूल्य दिलाने के लिए एमएसपी की घोषणा करती है. सरकार कमीशन फॉर एग्रीकल्‍चर कॉस्ट एंड प्राइज (CACP) की सिफारिशों के आधार पर एमएसपी तय करती है.

सी-2 पर उलझन?

यदि सरकार सी-2 के आधार पर फसल की लागत तय करना शुरू कर दे तो एक बड़ी उलझन सामने आएगी. दिल्ली और गोरखपुर में जमीन की कीमत एक समान कैसे हो सकती है? हर जगह जमीन का रेट अलग-अलग है ऐसे में राष्ट्रीय स्तर पर किसी फसल की लागत कैसे तय हो पाएगी.


फार्मूला कोई भी सटीक नहीं!


दूसरी समस्या ये है कि कहीं का किसान अपनी फसल में ज्यादा खाद और दवा डालता है और कहीं पर बहुत कम, ऑर्गेनि‍क खेती करने वाला कि‍सान खाद नहीं खरीदता. एक ही फसल की लागत किसी प्रदेश में ज्यादा तो किसी में कम हो सकती है इसलिए कोई भी फार्मूला सटीक नहीं हो सकता.


सात दशक पुरानी मांग पूरी की: शाह


बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि "मैं पार्टी की और से और देश के करोड़ों किसानों की ओर से प्रधानमंत्री को बधाई देना चाहता हूं. आजादी के बाद से किसानों की एक मांग थी कि उनको उचित मूल्य मिलना चाहिए. किसी सरकार ने ये हिम्मत नहीं की थी. आज नरेंद्र मोदी सरकार ने सात दशक पुरानी मांग को समाप्त किया है. इस ऐतिहासिक फैसले से कुछ फसलों को 50 प्रतिशत से ज्यादा फायदा होने की संभावना है.
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