बागवानी का बेहद शौक होने के बावजूद उसने कभी कोई पौधा खुद अपने हाथों से नहीं रोपा. वक्त की कमी नहीं. हर शाम दफ्तर के बाद घंटाभर माली को निर्देश देने में बीतता है. वो बताता है कि किस पेड़ की बाड़ अब काट दी जानी चाहिए. किस पौधे को कांट-छांट की जरूरत है. किसे थोड़े दिनों के लिए औरों के हिस्से की भी धूप चाहिए.

शहर के व्यस्ततम इलाके में घर होने के बावजूद उसके बागीचे की पत्तियों पर धूल की झीनी परत भी नहीं जमने पाती. पौधों में अंकुर फूटने के बाद वो उन्हें किसी बच्चे-का-सा दुलराता है. वो खुद पौधे नहीं लगाता क्योंकि उसे डर है कि उसके लगाए पौधे सूख जाएंगे. 

पता नहीं बचपन के किस कोने की ये याद अब भी उसके मन में उतनी ही जिंदा है. शौक से उसने कोई पौधा लगाया और हर दिन उछाह से आंगन में देखता कि उसके रोपे पौधे में जान आई या नहीं. पौधा अपने मरने के साथ उसके मन में ये डर रोप गया कि उसके हाथों लगाए पौधे नहीं जीते. आप या आपके आसपास भी ऐसा कोई जरूर होगा, जो कोई काम करने से महज इसलिए कतराता होगा कि उसके हाथों चीजें नहीं फलतीं. या फिर बिल्ली के रास्ता काटने पर तंज से ये कहने वाले भी दीख पड़ते हैं कि आज बिल्ली का दिन खराब है.

मजाक में कही जाने के बावजूद ये बातें बताती हैं कि कहने वाले के दिल में कहीं न कहीं कुछ बहुत गहरे धंसा हुआ है. इससे निजात पाने की जगह लोग अक्सर इसे अपने सेंस ऑफ ह्यूमर का हिस्सा मान लेते हैं. जाने-अनजाने खुद को कोसते रहते हैं. ऐसे लोगों का साथ भी किसी यंत्रणा से कम नहीं होता.
ऐसे ही एक इंसान से एक बार मेरा भी साबका पड़ा. जब भी वो खुद किसी बात पर उसके 'पैमाने' के हिसाब से ज्यादा गहरी सांस ले लेता, तुरंत कह पड़ता- आज का दिन खराब जाने वाला है, ऐसा मेरे साथ हमेशा होता है कि जब मेरी सांसें गहरी होती हैं, दिन बिगड़ जाता है. खुद को कोसने वाली बातों की उसके पास भरमार थी.

बौद्धिक रूप से बेहद समृद्ध और हंसोड़ होने के बावजूद उसके साथ बिताया सारा वक्त मेरे लिए बर्फ की सिल्ली वाले टार्चर से कम नहीं था. कहना न होगा, फिर मैंने उसके साथ वक्त बिताने का हर मौका भरपूर टाला.

क्या आप भी ऐसे किसी इंसान को जानते हैं जो बात-बात पर खुद पर ही तंज कसता है, वो भी ऐसी बातों के लिए जो उसके बस में नहीं. आत्मदया की ये भी एक अलग किस्म है. इसका मरीज अक्सर बचपन में घटी किसी घटना के कारण इस हद तक परेशान हो जाता है कि उसे अपनी जिंदगी की हकीकत मान बैठता है.

हमारे देश के कुछ हिस्सों में इसके लिए बाकायदा एक शब्द भी इजाद किया गया है- पनौती. फलां इंसान फलां चीज़ के लिए पनौती है. कई लोग खुद को ही पनौती मानते हुए कोसते रहते हैं.

खुद को औरों से अलग मानना अच्छा है लेकिन इस अलग होने के लिए आत्मदया कतई अच्छी नहीं. पनौती जैसे किसी मिथक से बाहर निकलकर देखें. उसके हाथों लगाए पौधे मर जाते तो उसका बगीचा कभी इतना फलता-फूलता नहीं. जैसे आपको बिल्ली के रास्ता काटने से कोई फर्क नहीं पड़ता, वैसे ही बिल्ली को आपकी अच्छी-खराब किस्मत से कोई सरोकार नहीं. उस पौधे को मुरझाए काफी वक्त बीता, अब एक पौधा लगाकर देखें.
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